जयपुर अर्बन- रूरल फ्रिंज पर खूबसूरत झील चन्दलाई हैं. शिवदासपुरा के निकट टोंक रोड से उतरकर दाएँ तरफ 1-2 किमी चलते ही झील नजर आने लगती हैं। झील के समीप पहुँचते ही तापमान में गिरावट सर्दी के एहसास को बड़ा देता हैं। सर्दियों की धुन्ध में झील के लेक आइलैंड से आगे क्षितिज खो जाता हैं। एक अंतहीन समुद्र सा पसरे होने का भ्रम भी पैदा होता हैं। खोये हुए क्षितिज को नाव पर सवार होकर निकल जाने को मन करता हैं. 5-6 ऊँची इसकी दीवार को नापने के लिए मैं जल्दी जल्दी कदम बढ़ता हूँ. इसकी सुंदरता का नशा बढ़ने लगता हैं.
धुंध में झील के उस पार दिखाई देना बंद हो जाता हैं
झील के मनमोहक दृश्य, सैलानियों के कदम रोक लेते हैं.
यहाँ हर वर्ष हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी नवंबर से फरवरी में पड़ाव डालते हैं. कहीं सारस क्रेन के जोड़े एक पैर पर खड़े होकर साधना में लिप्त हैं तो कहीं पेलिकन झील के बीचों बीच स्थित द्वीप पर पंखों को फैलाते धूप में नहा रहे हैं।
यहाँ प्रकृति प्रेमी बर्ड वाचिंग और फोटोग्राफी का आनंद लेते हैं. झील की मीलों लंबी दीवार पर सुबह का भ्रमण आपका दिन बना सकता हैं. कुल मिलाकर जब आप कंक्रीट जंगल से से उब जाए, यहां सुकून ज़रूर मिलेगा।
झील में प्रदूषण का स्तर कम भी हैं। इसके दो तरफ ओर जयपुर की लीप फ्रोगिंग बसावट हैं, शेष दो तरफ चंदलाई गांव एवं उसका कृषि क्षेत्र हैं। यहां धीरे-धीरे कृषि भूमि का आवासीय भूमि में बदलाव हो रहा हैं।
वाइल्डलाइफ संरक्षण
यह एक सुन्दर लैंडस्केप हैं। जो हर साल सर्दियों में कई हज़ार प्रवासी पक्षी को आश्रय देता हैं, पक्षियों के झुण्ड उत्तर गोलार्द्ध की बर्फबारी से बचाव, सुरक्षित प्रजनन और भोजन की तलाश में आते हैं.
यह वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता की अनिवार्य कड़ी हैं।
अर्बन हीट आइलैंड और चंदलाई
ग्रीन कवर के घटने, पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के मिले जुले असर ने महानगरों को हीट आइलैंड में बदल दिया हैं। नगरों और उसके निकटवर्ती क्षेत्र में तापमान अंतर 2-10 डिग्री से. तक पाया गया हैं। जबकि झील – नगरीय तापमान का तुलनात्मक अंतर ओर भी ज्यादा हैं। एक बड़ी झील का नगर किनारे स्थित होना नगर के तापमान के
नियंत्रण मेंसहयोगी हैं।
वाइल्डलाइफ पर्यटन:
वाइल्डलाइफ पर्यटन,लोगों को पर्यावरण के संवेदी और सजग बनाता हैं। जिससे लोग संरक्षण कार्यक्रमों में योगदान देते हैं। यह स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाता हैं। यहाँ अनेक प्रकृति प्रेमी देखे जाते हैं।
यह झील करीब 140 वर्ष पुरानी हैं. इसके महत्व को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा इस झील को राजस्थान झील (संरक्षण और विकास) प्राधिकरण एक्ट, 2015 के अंतर्गत संरक्षित करना प्रस्तावित हैं. वर्तमान में यह निम्न संकट से गुजर रही हैं-
- बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप – झील से अवैध पानी निकासी ⅓ पानी को खत्म कर देता हैं। जिससे गर्मियों में पानी का स्तर न्यून हो जाता हैं। इससे पक्षियों के जीवन पर संकट आ जाता हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार इसलिए प्रवासी पक्षियों की संख्या लगातार घट रही हैं। मछली पालन भी एक समस्या हैं।
- सरकारी उपेक्षा – राज्य सरकार ने राजस्थान झील संरक्षण और विकास प्राधिकरण एक्ट 2015 को लागू करने में लापरवाही दिखाई हैं। जिससे अधारणीय विकास से उत्पन्न प्राकृतिक जल निकायों पर अतिक्रमण को रोकने और इसके प्रति जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाही नही हो रही हैं। झील में सॉलिड वेस्ट निस्तारण भी हुआ हैं। मछलियों का मरना प्रदूषण का ही कारण हैं
- नगरीय विस्तार तथा भू-माफिया ने झील के आसपास की ज़मीन पर कब्ज़े का प्रयास किया हैं। इससे झील में वर्षा जल लाने वाले चैनल कम हुए हैं। झील के चारों तरफ विलायती बबूल स्थानिक पादप प्रजातियों के विरुद्ध इनवेसिव प्रजाति का व्यवहार करते हैं.
इसका क्षेत्रफल मानसागर झील (जयपुर) से भी ज्यादा हैं. इसे मॉडल झील के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए। यह नगरीय आशाओं का प्रतीक हैं और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण में हमारी समझ और क्षमताओं औमें वृद्धि करेगा.
इस नगरीय विस्तार का अधिक पीड़ित नही हैं। यह सही समय की झील के पुनर्निर्माण का विस्तृत फ्रेम-वर्क तैयार किया जाए.