पूर्वोतर भारत की मेरी इस सोलो-बाइक ट्रिप का पहला पड़ाव मावफलांग गाँव हैं। मावफलांग, मेघालय का एक प्रसिद्ध और खूबसूरत गाँव हैं।यह गाँव मावफलांग सेक्रेड ग्रोव (पवित्र वन), डेविड स्कॉट ट्रेक, खासी हेरिटेज विलेज और मावफलांग डैम के लिए प्रसिद्ध हैं। राजधानी शिलांग से घुमावदार रास्तों एवं नयनाभिराम नजारों से होते हुए, प्राइवेट शेयर्ड टैक्सी द्वारा 1.30 घंटे में यहाँ पहुंचा जा सकता हैं। लेकिन बाइक का सफ़र और भी कम्फर्ट होता हैं। शिलांग से निकलते ही रास्ते में एलीफैंट फाल्स और शिलांग पीक मिलती हैं, जो इन खूबसूरत रास्तों के साथ आपके रोमांस को बढ़ा देती है।
मैं यहाँ दोपहर बाद 3 बजे पहुँचता हूँ, लेकिन यहां सूर्य ढलान पर है क्योंकि मेघालय एवं राजस्थान के बीच सूर्योदय – सूर्यास्त में तकरीबन 1.30 का अंतर होता है। यह मार्च का पहला सप्ताह है और राजस्थान के विपरीत यहाँ काफी ठंड है क्योंकि यह इलाक़ा समुद्रतट से 1400-1500 मीटर की ऊंचाई पर है। खासी हेरिटेज विलेज तक आते आते रास्ता बंद हो जाता है। यहीं पर पर्यटकों के लिए खासी शैली में झोपड़ी-नुमा सूचना केंद्र है जिसमें चाय-पानी की व्यवस्था भी है। सबसे पहले मैंने एक चाय ली यहाँ चाय के साथ एक तली हुई मीठी ब्रेड भी परोसी जाती है जिसका स्वाद मालपुए जैसा लगा।
यहीं पर मेरी मुलाकात गाइड सन लिंगदोह से हुई। लिंगदोह अंग्रेजी में ही सहज था तो बातों का सिलसिला भी अंग्रेजी में ही शुरू हुआ। खासी समाज-संस्कृति, राजनीति, गवर्नेंस, अर्थव्यवस्था व पर्यटन पर खूब चर्चा हुई। हालांकि अब रौशनी इतनी ही बची थी कि मैं केवल मावफलांग पवित्र वन घूम पाऊं, जिसका आर्टीकल लिंक (मावफलांग पवित्र वन) हैं।
मावफलांग पवित्र वन घूमकर हम वापस सूचना केंद्र आ गए। यहीं पर मुझे मेघालय में बनने वाली राइस-बीयर (Ka Kiad Um) चखने का भी मौका मिला। यह दूधिया रंग की स्वादिष्ट बीयर है, जिसे चावल के फर्मेंटेशन से बनाया जाता हैं। आधा लीटर बीयर 50 रुपये में मिल जाती हैं। यह बोतल मैंने पांच लोगों के साथ शेयर की, मुझे तो बस इसका टेस्ट जानना था। (फोटो: इन्टरनेट)गाइड सन लिंगदोह ने गाँव के अन्दर ही बने होम-स्टे में रुकने की व्यवस्था करवा दी। पास में ही एक घर के अन्दर रेस्टोरेंट में खाना खाया। वेज खाने में केवल दाल-चावल का ही विकल्प हैं। यहाँ खाना सस्ता है और नॉन-वेज यहाँ का मुख्य भोजन है।
हर रात को सोने से पहले मैं अगले दिन के कार्यक्रम का एक ओवरव्यू दिमाग मे बना लेता हूँ ताकि आने वाले दिनों का सदुपयोग हो सके और तय कार्यक्रम के तहत यात्रा के सभी स्थलों में पहुँच पाऊं। मावफलांग से अगले दिन दोपहर 12.00 बजे तक निकल जाना है ताकि नोकरेक नेशनल पार्क पहुँचा जा सके। इसके लिए सुबह सूर्योदय के साथ डेविड स्कॉट ट्रेक से शुरुआत करनी होगी।
डेविड स्कॉट ट्रेक
गाँव में मुर्गे की बांग के साथ दिन की शुरुआत होती हैं जो मुझे बचपन की याद दिला देती है तभी से ही मेरे मन मे यह जानने की बड़ी जिज्ञासा होती थी कि मुर्गे का नियत समय पर ही बांग देने के पीछे आखिर क्या लॉजिक है। हाल ही में छपे एक शोध से इस रहस्य पर से पर्दा उठा, दरअसल मुर्गे के दिमाग में एक बायोलॉजिकल कंपास होता हैं जो उसे समय का सही ज्ञान करवाता है।
गाँव से 2 किमी आगे यह ट्रेक शुरू होता है। मैंने जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाएं और ट्रेक के शुरुवाती बिंदु तक पहुँच गया। सामने घना जंगल है, एक पगडण्डी बनी हुई है जो पहाड़ के किनारे किनारे उमियाम नदी के बेड तक जाती है। यूं तो यह ट्रेक 16 किमी लम्बा है जो मावफलांग से शुरू होकर लाद-मावफलांग में समाप्त होता है।लाद मावफलांग से आगे रास्ता चेरापूँजी की तरफ जाता है। उमियाम नदी पर बने सस्पेंशन ब्रिज तक ट्रेक की लंबाई 4 किमी है, जिसे 2-3 घंटे में पूरा किया जा सकता है और अधिकांश यात्री यहीं तक ट्रैकिंग करके वापस मावफलांग आ जाते हैं। नदी पर बने पुल तक ढलान है जबकि वापसी में थका देने वाली चढाई।
ट्रेक पर मैं बिना गाइड के अकेला हूँ. शायद आज मैं इस पर जाने वाला अकेला ट्रेकर था। पूरे ट्रेक पर दो लकड़ी चुनने वाली महिलाओं के अलावा भी व्यक्ति नज़र नहीं आया।
जंगल के बीच में परिंदों की आवाज़ और शांय शांय चलती तेज हवा के अलावा कुछ भी सुनाई नहीं देता है। घने जंगल से अकेले गुजरने पर थोड़ा डर तो लगता ही है, लेकिन मैं पहले ही जानकारी लेकर आया था कि कोई खतरनाक जानवर दिन के वक़्त नजर नहीं आएगा। इसलिए बिना गाइड के ट्रैकिंग भी सुरक्षित रहेगी। अकेले व्यक्ति के लिए इसे एक बेकार हिंदी हॉरर फिल्म देखने जैसा अनुभव हो सकता है।
लेकिन मैं इस ट्रेक का आनंद ले रहा था, अनेक प्रकार के पक्षी और उनकी मधुर आवाज मन को सुकून देती है। पक्षी काफी शर्मीले हैं, व्यक्ति के नज़दीक आने से डरते हैं। इसलिए इनकी तस्वीरें उतरना उतना ही मुश्किल काम हैं। फिर भी कुछ पक्षियों के फोटो लेने में सफल रहा हूँ।आर्किड, जंगली फूल, नदी के सुन्दर नज़ारे आपको अकेला महसूस ही नहीं होने देते।
सूरज के ऊपर चड़ने के साथ साथ यह भूदृश्य अपने रंग बदलने लगता हैं, सुबह थोड़ी धुंध रहती है जो धीरे धीरे कम होती जाती है।
मैं अब उमियाम नदी के बेड में पहुँच गया हूँ, पानी एकदम साफ़ है मैंने पीने के लिए पानी बोटल भरी, पाने पर पानी ठंडा और बंद बोतल पानी से भी अच्छा लगा। इसे पीकर मन तृप्त हो जाता है।नदी को पार करने के लिए सस्पेंशन ब्रिज है। यहाँ बैठकर प्रकृति का आनंद लेने का अपना ही मज़ा है। कुछ खाने के लिए यहाँ ले आना चाहिए ताकि वापसी कि चढ़ाई के लिए आपके अन्दर थोड़ी ऊर्जा आ सके। वापसी में लगातार चढाई है। तापमान कम है लेकिन सीधी चढ़ाई पसीने-पसीने कर देती है। वापसी में मैंने कोई ख़ास फोटो नहीं खींचे। यहाँ वैली ऑफ़ फ्लावर्स के बाद मुझे दूसरी बार अहसास हुआ कि किसी ट्रेक से लौटते वक़्त व्यक्ति थक जाता हैं और फोटो खींचने लायक उर्जा नहीं बचती। अतः ट्रेक पर जाते समय ही फोटो खींच लेने चाहिए।
यह ट्रेक आपको प्रकृति के नज़दीक ले जाता है। हिमालय के ट्रेक्स के उलट यह साफ़ – सुथरा है। इसकी जैव और वानिस्पतिक विविधता के कारण प्रकृति प्रेमियों के बीच प्रसिद्ध है।
मावफलांग डैम व्यू
डेविड स्कॉट ट्रेक के शुरुआती बिंदु से 1-2 किमी चलने पर डैम का व्यू नजर आता है।
इसी बांध से शिलांग को जल आपूर्ति होती हैं।
शिलांग से मावफलांग पहुँचने का रास्ता :-
मावफलांग: Google Maps
[…] था। वहां से अगले दिन मावफलांग पहुँचा। मावफलांग से मधुर यादों के साथ 06 मार्च, 2018 की दोपहर में नोकरेक […]
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