आज (13.03.2018) मेघालय दर्शन का नौवां दिन था और आखिरी चरण भी। आज की यात्रा के लिए एक अरसे से उत्साहित था क्योंकि मैं मावलीननोंग यानी एशिया के सबसे स्वच्छ गांव जाने वाला हूँ। मावलीननोंग मेघालय के पूर्व खासी हिल्स जिले का एक छोटा-सा गांव है जो 2003 में सुर्खियों में आ गया जब डिस्कवर इंडिया नामक ट्रैवल मैगज़ीन ने इसे एशिया में सबसे स्वच्छ गांव का दर्जा दिया। एकाएक ही यह गांव दुनिया के पर्यटन नक्शे पर आ गया, जिसकी स्वच्छता की तुलना यूरोप के शहरों से की जाने लगी। हाल ही में 2016 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक रेडियो संदेश में मावलीननोंग का जिक्र किया और स्वच्छता के इस मॉडल को पूरे भारत में स्थापित करने का आह्वान किया।
यह मनमोहक गांव, राज्य की राजधानी शिलांग से 92 किमी की दूरी पर स्थित है। एन.एच. 206, जो शिलांग से डावकी को जोड़ता है, पर स्थित पोंगतुंग से मावलीननोंग की सड़क जाती है। खूबसूरत टेड़े मेढ़े रास्ते से होकर सफर की शुरुआत होती है एवं निर्जन व शांत से दिखने वाला यह रास्ता गंतव्य के प्रति कौतुहल जरूर पैदा करता है। रास्ते के दोनों तरफ बांस का जंगल है, जो उसे एवेन्यू का रूप देता है, नदी – नालों पर बने पुलों को पार करते हुए आगे बढ़ना और दौड़ती बाइक के साथ मन भी हवा में उड़ने लगता है। जो इस कहावत को जरूर चरितार्थ करता है कि रास्ते, मंजिलों से ज्यादा खूबसूरत होते हैं।

जब मैं गांव के प्रवेश द्वार पर पहुंचा तो ठीक 11 बजे थे, सूरज सिर के ऊपर आ चला था। मैंने टिकट लिया और आगे कीओर बढ़ गया। अब मैं इस खूबसूरत गाँव के अंदर था, जहां पहुँचकर एक कवि को अपनी कविता व एक चित्रकार को एक खूबसूरत चित्र मिल जाए। वाहन खड़ा करने के लिए पार्किंग निर्धारित है, वही पर एक बड़ा सा होर्डिंग लगा हुआ है जिसमे गाँव के नियम-कायदे लिखे हुए हैं। एक वास्तुकार की नजर से देखें तो हरेक चीज अपनी सही जगह दिखाई पड़ती है। यहां सामुदायिक शौचालय बने हैं, जिसके इस्तेमाल का शुल्क 5 रूपये है। कुछ लोग सड़क की सफाई कर रहे हैं , इसे देखकर एक बार तो लगेगा भला दोपहर में भी कोई सड़कों की सफाई करता है। कचरा-कूड़ा इकट्ठा करने के लिए नियत बिंदुओं पर बाँस से बनाये कचरा पत्र रखे हैं। सभी घर पक्की सड़क या पगडंडियों से जुड़े हैं। हर घर में शौचालय है। पानी के लिए नल लगे हैं एवं वर्षा के जल के भंडारण की उचित व्यवस्था है।


ऐसा लगा जैसे एक सपनों के गाँव की तलाश यहाँ आकर खत्म हुई, महात्मा गांधी के ग्राम-स्वराज की संरचना भी कुछ ऐसी ही थी। एशिया के स्वच्छतम गांव के खिताब के साथ मावलीननोंग दुनिया के पर्यटन नक्शे पर अंकित हो गया। इससे यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई, अब यहाँ हज़ारों की संख्या में देशी और विदेशी सैलानी आते हैं और इससे स्थानीय लोगों की आय भी तेजी से बढ़ी है। पर्यटकों के रात्रि विश्राम के लिए होम-स्टे बनाये हैं। खाना थोड़ा महंगा है।

2011 की जनगणना की जनसांख्यिकी के मुताबिक यहां कुल 77 परिवार हैं, जिसमें 414 व्यक्ति निवास करते हैं। साक्षरता 93.71% है। महिला साक्षरता, पुरुष साक्षरता से ज्यादा है। सभी के पास रोजगार है। कृषि मुख्य रोज़गार रहा है, लेकिन वर्तमान में पर्यटन मुख्य आय का स्रोत बनकर उभरा है। आंकड़े दर्शाते हैं कि यह सम्पन्न और विकसित गांव है।

जनसंख्या में 98% प्रतिशत लोग खासी समुदाय के आदिवासी हैं। खासी मातृ-सत्तात्मक समाज होता है। सम्पत्ति का अधिकार और उप नाम माता से पुत्री को हस्तांतरित होता है। प्रायः विवाह के लिए युवक – युवती को अपनी मर्ज़ी से संबंध तय करने की आजादी है। महिला-पुरुष के बीच यहां कोई भेदभाव नजर नही आता है। खासी समुदाय अब ईसाई धर्म को मानता है।

कहते हैं 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यहां हैजा नामक बीमारी ने महामारी का रूप ले लिया था। उस समय ईसाई मिशनरी परोपकारिक कार्य के ईसाई धर्म प्रचार कर रहे थे। मिशनरियों ने स्थानीय लोगों को स्वच्छता के बारे में जागरूक किया तथा स्वच्छता की नई परम्परा की शुरुआत की। हालांकि पूरे खासी हिल्स में स्वच्छता को पीढ़ियों से संस्कृति व परम्परा के अभिन्न अंग के रूप में पाया है।

पर्यटन
यह भारत-बांग्लादेश सीमा के निकट स्थित है। यहां से बांग्लादेश के मैदान नजर आते हैं। निकटवर्ती गाँव रिवाई में बने जड़ों के पुल (लिविंग रुट ब्रिज), स्कायवाक व ट्री-हाउस मुख्य रूप से प्रसिद्द हैं। यह मेघालय पर्यटन विभाग द्वारा विकसित ग्रामीण-पर्यटन का सफलतम मॉडल है।
