9 मार्च, 2018
चैत्र मास का कृष्ण पक्ष चल रहा है। काली रात, बियाबान जंगल के सन्नाटे को बढ़ा रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जंगल साधना में लीन हो। मैं गेस्ट हाउस में अकेला हूँ। जंगल का सन्नाटा गेस्ट हाउस की दीवारों से टकरा रहा है। ऐसे अकेलेपन में रातें लंबी हो जाती हैं। कई बार पशुओं और पक्षियों की विचित्र आवाज़ें इस घने जंगल के सन्नाटे को तोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन कहीं खो सी जाती है। कमरे की खिड़की का पर्दा हटाया तो ढ़ेर सारे तारे नजर आने लगे हैं। आसमान में इतने तारे वर्षों बाद देखे हैं। महानगरों में स्वच्छ आकाश के ऐसे दृश्य अब ढूँढने को भी नहीं मिलता है।
बालपकरम भ्रमण की उत्सुकता से सुबह 4 बजे ही नींद खुल गई। लेकिन बाहर अभी घुप्प अंधेरा है। पूर्वोत्तर के गुवाहाटी शहर और दिल्ली के बीच सूर्योदय में करीब 1 घंटे का अंतर होता है। 5 बजते – बजते भोर का उजास होते ही मैं बालपकरम के प्रवेश द्वार पर जा पहुंचा। बाघमारा से मिला फॉरेस्ट परमिट, पार्क अथॉरिटी को दिखाया। वही मुझे एक गाइड दिया गया।
मेरा गाइड निक जिसका गाँव महादेव में ही है, गारो जनजाति से आता है। कद-काठी से उम्र 35-36 की लगती है, लेकिन उसने अपनी उम्र 48 साल बताई तो मैं चौक सा गया। वह यहाँ फॉरेस्ट गार्ड है और जंगल में पेट्रोलिंग के अलावा खाली समय में गाइड का काम करता है। पार्क के अंदर प्रवेश से हमने मुख्य द्वार के बाहर स्थित कैंटीन में जलपान किया और जंगल सफारी के लिए खाने पीने का सामान भी साथ ले लिया।
पार्क के अंदर कार-जीप या मोटरसाइकिल जैसे निजी वाहन से प्रवेश की अनुमति है। हम मोटरसाइकिल-सफारी से जंगल भ्रमण करेंगे। प्रवेश द्वार से ही घना जंगल शुरू हो जाता है। इसके बीच से जाता है एक ट्रेक, जो इस पार्क के सबसे ऊँचे पठार पर ले जाता है। बालपकरम ऊंचाई समुद्र तट से 200 मीटर से शुरू होकर 850 मीटर तक जाती है। जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है, वृक्षों का आच्छादन कम होता जाता है। हम एक सपाट पठार पर आकर रुकते है। यह एक खुला जंगल सा नजर आता है, इस मौसम के आते-आते घास सूख गई है। बालपकरम अब मानसून का इंतज़ार कर रहा है, यह वर्षा की बूंदों से फिर से हरा हो उठेगा। कही-कही इस सूखी घास के बीच से ‘दिकगे’ नामक फूल बाहर आने लगे हैं।

ऊबड़-खाबड़ रास्ते से हम नेशनल पार्क के करीब 11 किलोमीटर अंदर आ चुके हैं। यह अब तक रोमांच से भरपूर माउंटेन-बाइकिंग जैसा सफर रहा। कई बार मोटरसाइकल फिसली भी, पर संभल भी गई। दरअसल इस रास्ते को हर साल आने वाली मानसून की भारी बारिश नष्ट कर देती है। लेकिन सफारी और पेट्रोलिंग वाहनों की आवाजाही से यह रास्ता फिर से बन जाता है। अंत में हमने मोटरसाइकल को पार्क किया। यहाँ आगे से आठ किमी लंबा पैदल ट्रेकिंग है, यह ट्रेक हमें गारो पौराणिक स्थलों से रूबरू करवाता है। बालपकरम की भूमि को गारो मान्यताओं में पवित्र स्थान माना गया है।

ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद गारो लोग की आत्मा बालपकरम आती है। मेरे गाइड ने बताया, “हम सभी लोग [गारो] बालपकरम जाएंगे, या तो जीवन में या फिर मृत्यु के बाद।” उसने आगे कहा, “लोगों का विश्वास है कि मृत्यु के बाद उनकी आत्माएं कुछ समय के लिए बालपकरम में निवास करती है।” इसलिए यह जगह उनके लिए पवित्र है। गारो मूलतः “सोंग्सरेक” धर्म के अनुयायी हुआ करते थे, लेकिन अब 95% गारो ईसाईयत को अपना चुके हैं। इसके बावजूद भी वे आज पूर्वजों की कथाओं पर विश्वास करते हैं और पुरानी परंपराओं का आज भी अनुसरण करते हैं।

बालपकरम, आत्माओं का घर (Memang.Asong) है। यहाँ “मित्ते अदालत” (आत्माओं का दरबार) में आत्माओं के भविष्य का फैसला किया जाता है। फैसले से पहले, सभी आत्माओं को बालपकरम [बालपकरम एक पारगमन शिविर जैसा है] में कई कर्तव्यों और परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। उसके आधार पर ही अदालत निर्णय लेती है, जिसमें कुछ अच्छी आत्माओं को स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है, जबकि दूसरों को एक इंसान के रूप में पुनर्जन्म दिया जाता है। लेकिन दुष्ट और पापी आत्माओं को जानवरों के रूप में धरती पर पुनर्जन्म दिया जाता है। यहाँ Memang.Asong की देखभाल ‘दीक्की’ [गारो सुपर हीरो] के परिवार के सदस्य करते हैं। सबसे पहले Memang.Asong में शासन करने के लिए “नटपा” को राजा नियुक्त किया। उसके बाद बिजली के देवता ‘गेओरा’ जिसने सात सिर वाले दानव अरागोंदी को मारा था। गारो प्राचीन किरदारों में केंद्रीय पात्र दीक्की था। सम्पूर्ण गारो भूमि उनकी मां मेनू रानी की थी। दीक्की की शादी डारचा की सबसे खूबसूरत बेटी गिटिंग से हुई थी। बंदी, दीक्की का भाई और महान योद्धा था। शोर, सौन्दर्य की देवी और बंदी की पत्नी है। बलवा एनोक हवा का देवता है। इसीलिए मान्यता है कि बालपकरम में सदाबहार हवाएँ चलती है। दीक्की , बंदी व बलवा बालपकरम की एक मजबूत तिकड़ी है जो गेओरा के नक्शेकदम पर चलते हैं। बालपकरम में महत्वपूर्ण स्थल है बंदी जलांग। यह बंदी के द्वारा निर्मित एक पुल है, जिसे Memang.Asong में प्रवेश के लिए बनाया था। थोड़ा आगे उनकी रसोई थी। उसके पास बोल्डक वृक्ष आता था। जिससे गाय बंधी रहती थी जो मानव आत्मा को स्वर्ग की और ले जाती है। पवित्र कुंड ‘चिदिमिक चियांगल’ जिसमे गारो लोग डुबकी लगाकर खुद को शुद्ध करते हैं। यहाँ एक बाजार भी था। इस तरह कई अन्य पवित्र स्थल भी आते हैं।



बालपकरम हिन्दू पौराणिक मान्यताओं से भी जुड़ा है। ऐसा विश्वास है कि लक्ष्मण के युद्ध में घायल होने पर हनुमान संजीवनी बूटी बालपकरम में लेने आए थे। लेकिन इस जानकारी के अभाव में कि कौनसी बूटी है, वे पहाड़ी का एक हिस्सा उठा ले गए थे इसीलिए बालपकरम में एक गहरी खाई बन गई है। इस पठार से महादेव, महेशकोला, गोनेश्वरी, कनाई जैसी नदियां बहती है। समीपवर्ती चितमंग पहाड़ियों को कैलाश पर्वत के तौर ओर भी माना जाता हैं।

हम चलते-चलते गहरी खाई के किनारे जा पहुँचते हैं। जिसे ‘मिनी ग्रांड कैनियन’ के नाम से जाना जाता है। इसका स्थानीय नाम ‘मित्ती रोंगखोल’ है। इसके बनने के पीछे एक रोचक कहानी है। बंदी ने सिमसांग नदी के प्रकोप से अपने कबीले की रक्षा के लिए उसका रास्ता रोकने का प्रयास किया लेकिन लिए उसने पूरा पहाड़ उठा कर उसके रास्ते में रखने का प्रयास किया, लेकिन वह केवल चिटमंग शिखर ही उठा सका। इससे इस कैनियन का निर्माण हुआ, जिससे होकर महादेव नदी बहती है। चिटमंग शिखर सर्वशक्तिमान देवता वेमोंग की स्थली बन गया। इसी कैनियन से महादेव नदी निकलती है।


सही मायने में बालपकरम नैचुरल हिस्टरी, कहानियों और किस्सों का एक नायाब म्यूजियम है। जैव-विविधता से भरपूर यह हाथियों, क्लाउडेड लेपर्ड, हूलोक गिबोन जैसे वन्यजीवों के लिए यह क्रिटिकल हैबिटाट है। यह नानाप्रकार की तितलियाँ और पक्षियों की प्रजातियाँ का घर है। बालपकरम में पाये जाने वाले पिचर प्लांट (एक मांसाहारी पौधा है) और दिकगे (Curcuma Psuedomontana) मशहूर है। पिचर प्लांट, कीट पतंगों के इंतजार में ये अपना ढक्कन नुमा मुंह खुला रखते है, जैसे ही इसकी मादक खुशबू से पतंगे आकर्षित होकर इस पर बैठते है, फौरन अपना मुख बंद कर लेता है। बाघमारा में पिचर प्लांट को समर्पित एक सैंक्चुअरी भी है।



हमें पूरा ट्रेक खत्म करते करते दोपहर हो चुकी है। अब वापसी का समय है। बालपकरम ने मुझे गारो संस्कृति और समाज को जानने में मदद की। एक सभ्यता के विकास के क्रम जानना मेरे लिए रोचक और यादगार अनुभव रहा है।

बालपकरम नेशनल पार्क किस तरह पहुँचा जाएं?
यह पार्क पूर्वोत्तर भारत में मेघालय राज्य के साउथ गारो हिल जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित है। साउथ गारो हिल के जिला मुख्यालय बाघमारा से करीब 50 किलोमीटर महादेव बीओपी (बार्डर आउटपोस्ट) है। यही पर बालपकरम का प्रवेश द्वार है। बाघमारा सड़क मार्ग से गुवाहाटी (250 कि॰मी॰)और शिलांग (280 कि॰मी॰) से जुड़ा हुआ है।
रात्रि विश्राम की व्यवस्था?
महादेव में फॉरेस्ट गेस्ट हाउस है। जिसमें रुकने का परमिट बाघमारा स्थित फॉरेस्ट ऑफिस से मिलता है।
बालपकरम जाने का सही समय?
सितंबर से फरवरी सबसे उपयुक्त समय होता है।
