साल 2018 के अंतिम दिनों में हम मुरैना जिले में प्राचीन मंदिरों की तलाश में घूम रहे थे। इस कड़ी का हिस्सा था सिहोनीया (प्राचीन सिंघपनिया) का ककनमठ मंदिर। यह मंदिर सिहोनीया गाँव से 3 कि॰ मी॰ बाहर की तरफ है। वहाँ पहुँचने के लिए सिहोनीया के हरे-भरे के खेतों के बीच से जा रही सड़क पर चले ही थे कि दूर से ही ककनमठ मंदिर का शिखर नजर आने लगा। करीब 30 मीटर ऊंचा यह मंदिर सहसा ही यात्रियों का ध्यान खींचता है। यूं तो मुरैना, चंबल नदी के बीहड़ों में रहने वाले कुख्यात डकैतों के लिए जाना जाता रहा है, मगर यह प्राचीन भारत के रहस्यमी मंदिरों को अपने आँचल में बसाये हुए है। माँ पार्वती के आराध्य भगवान शिव को समर्पित ककनमठ मंदिर इसी का उदाहरण है।

इसका निर्माण प्राचीन सिंघपनिया में 1020 ईस्वी के आसपास कच्छपघात सम्राट कीर्तिराज के शासनकाल में हुआ था। एक लोक कथा के अनुसार, रानी ककनवती भगवान शिव की परम भक्त थी, उसी के नाम पर मंदिर को “ककनमठ ” कहा गया। मूल रूप से यह कई मंदिरों कॉम्प्लेक्स था, जिसमें चार छोटे मंदिरों से घिरा एक केंद्रीय मंदिर था। केन्द्रीय मंदिर तीन मंज़िला ढांचा था, जिसके चारों ओर मूर्तिकला की शानदार नक्काशी है। वर्तमान में केवल केंद्रीय मंदिर के खंडहर बचे है। इसकी बाहरी दीवारें, बालकनियाँ और इसके शिखर का एक हिस्सा गिर गया है। इस मंदिर में तीर्थयात्रियों के आने के रिकॉर्ड मिलते हैं। एक विशाल चबूतरे पर निर्मित इस मंदिर के आर्किटेकचरल प्लान में गर्भगृह, खंभों पर बना विशाल हॉल एवं आकर्षक मुख मण्डल है, इसमे प्रवेश हेतु सामने की ओर से सीढ़ियों का प्रावधान है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग मंदिर का प्रधान देव है। मंदिर की मूर्तियाँ खजुराहो शैली की है। आज भी रोजाना सैकड़ों लोग आस्था के इस महान केंद्र पर दर्शनार्थ आते हैं।


एक इतिहासकार ने लिखा है कि संभवत: किसी भूकम्प के दौरान इस मंदिर को भारी नुकसान हुआ था। लेकिन यह बात अर्धसत्य है क्योंकि यह क्षेत्र भूकंपीय ज़ोन-II में आता है जहां सबसे कम तीव्रता के भूकंप आने की संभावना रहती है। इस प्रकार के भूकम्पों में इमारतों पर कोई खास असर नहीं होता है। वास्तविकता में मंदिर में विद्यमान विखंडित मूर्तियों इस दावे की पोल खोलती है जिन्हें देखकर स्पष्ट होता है कि इस महान मंदिर पर किसी आक्रांता की नजर पड़ी और उसने इसे छिन्न-भिन्न कर दिया। मंदिर के अहाते तथा उसके चारों तरफ लगी मूर्तियों को चुन-चुनकर विखंडित किया गया है, जो भूकंप से संभव नहीं था। यह मंदिर भले ही आज खंडहर में तब्दील हो गया हो, लेकिन इसके बिखरे पड़े भग्नावेष उस दौर की बेजोड़ स्थापत्य कला और मंदिर के प्राचीन वैभव की 1000 साल पुरानी कहानी सुनाते हैं। इस मंदिर को जीर्णोद्धार के द्वारा कुछ हद तक पुराना वैभव दिया जा सकता था परंतु यह अभी तक सरकारी उपेक्षा का शिकार रहा है।



इस मंदिर की दूरी मुरैना और ग्वालियर से क्रमश: 34 और 60 कि॰मी॰ है। यहाँ प्राइवेट टैक्सी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुलता है। प्रवेश नि:शुल्क है। सिहोनीया गाँव से 3 दूर यह मंदिर परिसर चारों ओर से हरे भरे खेतों से घिरा हुआ है। इसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए॰एस॰ आई॰), भोपाल कर रहा है।
