बचपन से आपने चम्बल के डकैतों के क़िस्से-कहानियां ज़रूर सुने होंगे। चम्बल नदी ने दुर्गम बीहड़ों का निर्माण किया, और इसी दुर्गमता ने डकैतों को पनपने के लिये उपजाऊ ज़मीन दी। लेकिन 1990 के दशक के अंत तक हालात बदल गए। एक तरफ सड़कों का जाल बिछाया गया, दूसरी तरफ कानून व्यवस्था में किये सुधारों से बीहड़ शांत नजर आने लगे। फिर भी यह क्षेत्र दिन के उजाले तक ही सुरक्षित माना जाता है।
लेकिन डकैतों के अलावा भी यहां कुछ ऐसा है जो भारतीय इतिहास में इसको महत्वपूर्ण स्थान दिलाता है और वो है मुरैना का चौंसठ योगिनी का मंदिर। जब लुट्येन्स के दिल्ली की वास्तुकला की बात आती है तो यह सवाल जरूर पूछा जाता है कि लुट्येन्स को भारतीय संसद भवन का ब्लू-प्रिंट आखिर कहाँ से मिला। कहीं यह मुरैना का चौंसठ योगिनी का मंदिर ही तो नही जिससे संसद भवन की इमारत हूबहू मिलती हैं? इसी पड़ताल में हमने मुरैना जिले के मितावली गांव का सफर शुरू किया। मितावली पहुंचने के लिए ग्वालियर से 38 किमी और मुरैना से 34 किमी का सफर है जो आसानी से एक घंटे में तय किया जा सकता है।
गांव की ऊंची पहाड़ी पर निर्मित यह मंदिर, जो दूर से ही नजर आने लगता हैं, स्थानीय लोगों के बीच एकोत्तरसो महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता हैं। 100 फ़ीट ऊंची पहाड़ी पर 150 सीढ़ियां को चढ़कर यहां पहुँचा जा सकता है।

चौंसठ [64] योगिनी मंदिर, भेड़ाघाट, जबलपुर
मंदिर की भू-योजना विशिष्ट है और भारत वर्ष में निर्मित चौंसठ योगिनी मंदिरों की भू योजना के समान है जिसमे प्रायः मुख्य मंदिर के चारों ओर वृत्ताकार में देव प्रकोष्ठ होते हैं। मंदिर का प्रमुख प्रवेश द्वार पूर्व में है तथा इसके चारों ओर निर्मित प्रकोष्ठ जिनमें सामने स्तंभों पर आधारित बरामदा है। छोटे-छोटे वृत्ताकार रूप में 64 प्रकोष्ठ बनाये गए है।

64 प्रकोष्ठों को जोड़ते हुए बनाया हुआ वृत्ताकार बनाया बरामदा
कुछ प्रकोष्ठों में शिवलिंग विद्यमान हैं, इन प्रकोष्ठ में योगिनी की मूर्ति भी स्थापित की गई थी, परन्तु कुछ चुरा ली गयीं और बची हुई मूर्तियों को विभिन्न संग्रहालयों में रख दिया गया। मध्य में एक ऊंची गोल जगती पर मुख्य मंदिर है जिसके गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है।

मंदिर काम्प्लेक्स के मध्य में बनाया वृत्ताकार मुख्य मंदिर, जहाँ शिवलिंग स्थापित है
अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस मंदिर का निर्माण महाराजा देवपाल द्वारा 1323 ईस्वी में करवाया गया था। लेकिन इस गाँव की कहानी कुषाण काल (300 ई.) से तब जुड़ गई, जब इस मंदिर की पहाड़ी की तलहटी में भारी भरकम आदमकद कुषाण कालीन पाषाण प्रतिमाएं प्राप्त हुई, जो वर्तमान में पुरातत्व संग्रहालय ग्वालियर में प्रदर्शित हैं ।
संसद भवन और चौसठ योगिनी का स्थापत्य कला
लुट्येन्स – बेकर के डिज़ाइन पर संसद भवन को बनाया गया है। 6 एकड़ में फैला यह भवन वृत्ताकार रूप में धौलपुर के लाल पत्थर से बनाया गया है. इसमें 144 स्तम्भों पर टिका हुआ एक वरांडा है और इसका व्यास 170 मीटर है।बीच में सेंट्रल हॉल है। संसद भवन का वृत्ताकार रूप मितावली के मंदिर की प्रति नजर आती है।


संसद भवन : मध्य में सेंट्रल हॉल तथा इसके तीनों और स्थित राजसभा, लोकसभा एवं ग्रंथालय
तथा सेंट्रल हॉल मुख्य मन्दिर की तरह मध्य में स्थित है. हालांकि लुट्येन्स-बेकर ने संसद भवन में विस्तार करते हुए, सेंट्रल हॉल के तीनों और लोकसभा, राज्यसभा और ग्रंथालय का निर्माण और करवाया।
भूकंप से सुरक्षा


एक और तथ्य है जो हमारा ध्यान खींचता है, कि यह मंदिर भूकंपीय जोन III में आता है फिर भी इसकी वृत्तीय संरचना में बिना किसी नुकसान के यह मंदिर सदियों से अपने मूल रूप में खड़ा है। यह तथ्य तब उद्धरत हुआ जब लोकसभा में संसद भवन (भूकंपीय जोन IV) पर भूकंप से पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा की गई क्योंकि इसकी भी संरचना चौंसठ योगिनी मंदिर के समान वृत्तीय है।
इसकी कुछ वास्तुशिल्प समानताओं को देखते हुए, यह अक्सर कहा जाता है कि दिल्ली का संसद भवन जो 1920 के दशक में बनाया गया था, इस वृत्ताकार मंदिर की तर्ज पर आधारित है। हालाँकि, इसके लिए कोई विश्वसनीय आधार नहीं है।